हम समांतर प्लेट संधारित्र की बात करें तो उसमें दो चालक प्लेटें एक दूसरे के काफी करीब रखी जाती हैं एक प्लेट पर धन आवेश तथा दूसरी प्लेट पर ऋण आवेश होता है तथा उनसे Q आवेश प्रवाहित करने पर वह अपने अंदर कुछ आवेश संचित कर लेती हैं।
यदि किसी संधारित्र की प्लेट को Q आवेश से आवेशित करने पर प्लेटों के बीच विभांतर V हो तो, संधारित्र कीधारिता
C=Q/V
समांतर प्लेट संधारित्र में धातु की दो समान आकृति एवं समान क्षेत्रफल की दो प्लेट हमको कुछ दूरी पर समांतर रूप से व्यवस्थित कर दिया जाता है इन प्लेटो के मध्य या तो निर्वात रखा जाता है या इनके बीच में कोई परावैद्युत पदार्थ भर दिया जाता है, यदि हम एक प्लेट को धन आवेशित करते हैं तो इसके कारण दूसरी प्लेट ऋण आवेशित हो जाती है।
जब संधारित्र को इस प्रकार संयोजित करते हैं कि एक संधारित्र की पहली प्लेट को बैटरी के धन टर्मिनल से तथा दूसरी प्लेट को दूसरे संधारित्र की प्रथम प्लेट से व दूसरे संधारित्र द्वितीय प्लेट को तीसरे संधारित्र की प्रथम प्लेट से तथा इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए अंतिम संधारित्र की दूसरी प्लेट को ऋण टर्मिनल से जोड़ते हैं तो यह क्रम श्रेणी क्रम संयोजन कहलाता है।
यदि तीन संधारित्र C1, C2, C3क्रम से श्रेणी क्रम में व्यवस्थित हो तथा इस संयोजन पर कुल विभांतर V हो तो,
1/C=1/C1+ 1/C2+ 1/C3
संदेशों को ऐसा संयोजन जिसमें प्रत्येक संधारित्र की पहली प्लेट को बैटरी के एक टर्मिनल से तथा प्रत्येक संधारित्र की दूसरी प्लेट को बैटरी के द्वितीय टर्मिनल से जोड़ दिया जाए समांतर क्रम संयोजन कहलाता है।
यदि तीन संधारित्र C1, C2, C3क्रम से समांतर क्रम में व्यवस्थित हो तथा इस संयोजन पर कुल विभांतर V तो,
C=C1+C2+C3
संधारित्र का क्या कार्य है?
इसका प्रमुख कारण आवेश को संचित करना है।
संधारित्र के क्या उपयोग हैं?
ऊर्जा भंडारण के लिए, pi तथा L विद्युत फिल्टर बनाने में, परिपथ के शक्ति गुणांक को बेहतर बनाने के लिये संधारित का प्रयोग किया जाता है।